हमारे भटकते विकास कर्ता (मजदूर)

दोस्तो आज मेरे पास ज्यादा कुछ है नहीं चर्चा के लिए बस मैं Nelson Mandela के एक थॉट पे बात करूँगा।

शिक्षा: वह हथियार जो दुनिया बदल सकता है — और मजदूरों का भविष्य भी

(Education is the most powerful weapon which you can use to change the world.)


नेल्सन मंडेला का यह विचार आपने पढ़ा होगा।
शायद कुछ ने समझा भी होगा, पर गौर कितनों ने किया?

अगर यह “हथियार” हमारे देश के हर नागरिक के पास होता — खासकर उन लाखों मजदूरों के पास, जो पलायन की पीड़ा से गुज़रे — तो शायद उन्हें लाठियाँ नहीं सहनी पड़तीं, जिल्लत नहीं झेलनी पड़ती, और सड़कों पर दम तोड़ने की नौबत नहीं आती।

आप कह सकते हैं — “शिक्षा से क्या होगा? पैसा नहीं था, सरकारें फेल थीं…”
बिलकुल, यह भी सही है। लेकिन क्या आपने एक और भेदभाव पर ध्यान दिया है?
शिक्षित और अशिक्षित का भेदभाव।

चलिए एक सवाल पूछता हूँ —
कोटा में फंसे छात्रों को कौन लाया?
विदेशों में फंसे यात्रियों को किसने प्लेन भेजकर वापस बुलाया?
क्या उन्होंने सरकारों को लाखों दिए थे?
नहीं। फिर क्यों?

क्योंकि वे शिक्षित थे।
वे जानते थे — कैसे सवाल पूछना है, कैसे मंच बनाना है, और कैसे जवाब मांगना है।
एक मजदूर, जो पढ़ा-लिखा नहीं है, वह बस उम्मीद करता है —
कि कोई उसकी आवाज़ सुनेगा… पर अक्सर कोई नहीं सुनता।

शिक्षा ही वह अंतर है जो

किसी को एयरपोर्ट तक पहुंचा देती है

और किसी को हजारों किलोमीटर पैदल चलने पर मजबूर कर देती है।

हमारे मेहनतकश मजदूर, जिनकी पीठ पर देश की अर्थव्यवस्था टिकी है —
अगर उनके हाथों में भी यह “हथियार” होता,
तो शायद सड़कों पर बिछी उनकी लाशें आज़ाद भारत का सबसे दुखद अध्याय न बनतीं।

कुछ लोग इस लेख को पढ़कर भूल जाएंगे,
कुछ उन्हें ही दोषी ठहरा देंगे — जो शोषित हुए।
लेकिन समझदार समाज का एक हिस्सा —
उनकी कुर्बानियों को कभी नहीं भूलेगा।

क्योंकि असली विकास की नींव उन्हीं हाथों से रखी जाती है — जो मिट्टी से जुड़कर सपनों को आकार देते हैं।

श्रम को प्रणाम।
शिक्षा को सलाम।
और हर मेहनतकश को सम्मान।

जय जवान, जय किसान, जय मज़दूर।

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