अंततः सभी माया के अधीन होते हैं। यह हर किसी का मोह ही है जो अधिकार और स्वामित्व चाहता है। इससे विरक्त होने का भाव आमतौर पर किसी व्यक्ति में तब तक नहीं आता जब तक वह अपने स्वत्व का त्याग न कर दे। बाकी हम सब एक ही नाव में सवार हैं और हमारे कर्म ही इसकी पतवार हैं।