
क्या एक खबर देश की सुरक्षा से ज़्यादा खतरनाक हो सकती है? और क्या प्रेस को सिर्फ वही खबर छापनी चाहिए जिसे सरकार छापने दे? भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर ऐसे सवाल एक बार फिर सतह पर आ गए हैं — और इस बार केंद्र में है राफेल रिपोर्ट और ‘द वायर’ पोर्टल को ब्लॉक करने की घटना।
6 मई 2025 को द वायर ने एक खबर प्रकाशित की, जिसमें फ्रांसीसी स्रोतों और रिपोर्टों के हवाले से दावा किया गया कि भारत के 3 राफेल विमान हाल ही में सीमा पर संघर्ष के दौरान गिराए गए। खबर में वॉशिंगटन पोस्ट और बीबीसी के तथ्यों को भी शामिल किया गया था, जिन्होंने मलबे की तस्वीरों और विमान कोड के आधार पर इस दावे की आंशिक पुष्टि की। लेकिन कुछ ही घंटों में भारत सरकार के आदेश पर द वायर की वेबसाइट को ब्लॉक कर दिया गया।
खबर हटाई गई, वेबसाइट फिर से चालू हुई — लेकिन यह सवाल कायम है:
क्या भारत में अब तथ्यपरक पत्रकारिता एक अपराध है?
यह पहली बार नहीं है जब प्रेस को चुप कराने की कोशिश की गई हो, लेकिन यह उदाहरण इस बात का प्रतीक बन गया है कि किस तरह से रक्षा, राष्ट्रवाद और ‘राष्ट्रहित’ के नाम पर लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है। राफेल सौदा पहले से ही विवादों में रहा है — इसकी लागत, पारदर्शिता और राजनीतिक दबाव को लेकर पहले भी सवाल उठे हैं। और अब जब युद्धक्षेत्र से राफेल के गिरने की रिपोर्टें आ रही हैं, तब उन्हें छिपाने की कोशिश प्रेस पर सीधा हमला है।
प्रेस की स्वतंत्रता कोई विशेषाधिकार नहीं, एक संवैधानिक अधिकार है।
यह सत्ता की आलोचना करने का नहीं, बल्कि सत्ता को जवाबदेह ठहराने का औजार है।
द वायर की खबर सही थी या गलत, यह बहस का विषय हो सकता है। लेकिन उसका दमन प्रेस परिषद, अदालत या तथ्यों के आधार पर होना चाहिए — न कि सरकारी सेंसरशिप के ज़रिए। जब लोकतंत्र में मीडिया चुप होता है, तो जनता को सिर्फ सत्ता की आवाज़ सुनाई देती है — और वही सबसे बड़ा खतरा है।
यह लेख किसी पार्टी, नेता या विचारधारा को निशाना नहीं बनाता। यह केवल इतना कहता है कि
अगर एक पत्रकार को सच लिखने की सज़ा मिले, तो कल एक नागरिक को सच बोलने की सज़ा भी मिल सकती है।
सत्यापित स्रोत:
1. The Telegraph India – राफेल रिपोर्ट के बाद द वायर ब्लॉक
2. Washington Post – राफेल विमान गिरने की पुष्टि
3. Reuters – पाक का दावा: 5 भारतीय विमान मार गिराए
4. [BBC Verify – राफेल मलबा विश्लेषण]
5. Naval News – भारत का 26 राफेल मरीन सौदा
सुधांशु यादव, शोधार्थी