क्या गुलामी हमारी रगो में बस चुकी है।

दोस्तों, आपको क्या लगता है कि हम सब आजाद हैं?

क्या लगता है कि लोकतंत्र पूर्णतया लागू हो पाया है? SC शासक तो OBC और सामान्य जन अपने आप को गुलाम महसूस करते हैं।अगर OBC शासक तो SC और सामान्य जन अपने आप को गुलाम समझते हैं। अगर सामान्य जन शासक तो SC और OBC गुलाम समझते हैं। अगर मुस्लिम शासक तो हिंदू गुलाम, हिंदू शासक तो मुस्लिम गुलाम समझते हैं। कोई जातिवाद के नाम पर गुलाम बना रहा है, कोई मज़हब के नाम पर। यह कैसी आजादी? यह कैसा लोकतंत्र? क्यों बने हुए हैं हम काठ के पुतले? क्यों लड़ रहे हैं? क्या आप सब अंग्रेजों की चाल से वाकिफ नहीं हैं? लोग कहते हैं, इंसान ठोकर खाकर चलना सीखता है, फिर क्यों नहीं सीखते? ‘फूट डालो और राज करो’ के सिद्धांत से क्यों नहीं हटते? क्यों नहीं ऐसे लोगों को देश से निकाल कर बाहर करते हो? क्या गुलामी तुम्हारी रगों में बस गई है? या इसे तुमने अपनी किस्मत मान लिया है? लगता तो यही है। तभी अभी भी कुछ जगह अंग्रेजों के सिद्धांतों की लीक पर चल रहे हैं। उठो और जागो देशवासियों! तोड़ दो मज़हब की बेड़ियाँ, तोड़ दो जातिवाद की हथकड़ियाँ। इन्हें भी दिखा दो लोकतंत्र की ताकत, आने वाली पीढ़ी को दिखा दो लोकतांत्रिक आजादी।
ऋषि की कलम से

पुरानी यादें

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आज अलमारी साफ करते समय,
कुछ पुराने चिथड़े निकल आए,
कभी ये भी ख्वाब हुआ करते थे।

पुलिस वाला वो लिबास,
जिसे मैं पहनकर घूमता था,
सारे मोहल्ले में दरोगा बनकर,
और
कंधे पर लटकती सीटी,
जिसे बजा बजाकर,
मोहल्ला सिर पे उठा लेता था,
अब वो लिबास फट गया कई जगहों से।

एक स्वेटर मिला,
जिसे नानी ने बुनकर भेजा था,
किसी ने उसे उधेड़ने की कोशिश की है,
लेकिन नानी के प्यार की गिरहें उधेड़ नही पाये।

एक टूटा हुआ खिलौना मिला,
वो सैनिक जो बंदूक तानकर चलता था,
सिर अलग हो गया था सैनिक का,
लगता है बंद अलमारी में पहरेदारी करता था।
लगता है बंद अलमारी में पहरेदारी करता था।
किसी दुश्मन से मुठभेड़ में शहीद हो गया।

कुछ कागज के पुर्जे हैं,
खत लगते हैं, माँ ने जो लिखे थे,
एक तार भी है
जिसने रुला दिया था मुझको।

आज अलमारी साफ करते समय,
कुछ पुराने चिथड़े निकल आए,
कभी ये भी ख्वाब हुआ करते थे।