मेरा दर्द ही इतना बेदर्द निकला।
एक दर्द के बाद दूसरा दर्द दे निकला।
अब दर्द को बेदर्दी से बहार निकाले मैं भी बेदर्द हो निकला।
देखो देखो वक्त के रूप भी देखो।
कभी मरहम लगता
तो कभी गहरे घाव दे जाता।
कभी ये हँसता
तो कभी ये रुलाता।
देखो देखो इस वक्त के खेल निराले देखो।
कभी ये मिलाता
तो कभी ये दूरियां बढ़ाता।
कभी कोई हारा है इससे
तो कभी कोई जीता है इससे
जिसने भी वक्त की मार को है झेला
उसी ने इस वक्त के रहस्य को है जाना।
Rk ki kalam se
मेरे परिवार के प्रियजन(मेरे परिवार का तात्पर्य पूरे देश के नागरिको से है।) हकीकत में हमें पढ़ाये जाने वाला इतिहास, और प्रत्यक्ष प्रमाण और इतिहास के महान लेखकों के लिखे लेखों के बीच हम सभी को अंतर करना कितना कठिन हो चुका है। और ऐसे में एक बच्चे के शब्दों ने मुझे हिला ही दिया।
मैं एक दस साल के मासूम बच्चे से बात कर रहा था। मैंने पूछा बेटा क्या बनना है। वो तपाक से बोलता बहुत बड़ा वैज्ञानिक बनना है। हालांकि मैं हिंदी में लिख रहा हूँ। वो इंग्लिश शब्दों का इस्तेमाल कर रहा था। बच्चा मासूम था इसलिए मैंने उससे और बात करने की इच्छा से पूछा वैज्ञानिक ही क्यू बनना कुछ और क्यू नहीं। वो बोला मुझे टाइममशीन बनाना है। मैं चौका इतने छोटे बच्चे के दिमाग में टाइममशीन बनाने का विचार! मैने पूछा क्यू ! बच्चा बोला “हमें अपना इतिहास देखना है। क्युकि लोग कहते कुछ हैं। और किताबो में लिखा कुछ है।”
मैं उसकी बात सुन कर मैं शान्त हो गया। क्युकि मैं खुद अपने इतिहास को लेकर गुमराह हूँ। तो मैं उसे क्या समझाऊँ कि हमारा इतिहास क्या है। मुझे तो यही लगता है। हमारे कुछ बुद्धजीवों ने अपने फायदे के लिए इतना तोड़ मरोड़ दिया की सत्य और असत्य का पता भी नहीं लगता। क्या ये देश तुंम्हारा नहीं। क्या जो अपने फायदे के लिए देश के इतिहास से खेल गए। या मैं तुम्हे देश द्रोही के नाम से जानू। ख़ैर इस नाम में कोई बुराई नहीं। मुझे नहीं पता क्या है मुग़ल और ब्रिटिश शासन के बाद तुंम्हारे विचार। चलो आज नहीं तो कल कोई न कोई आयेगा तुम्हे भी बदनाम करेगा देश के इतिहास में। लेकिन मैं उस बच्चे को उसे उसके इस काम के लिए भविष्य में सफल होने का आशीर्वाद भी नहीं दे सकता। क्युकि अगर ऐसा होता है। तो जाने कितने देश के नागरिको ठेश पहुँचेगी। जिन्हें वो नायक समझते थे वो ही खलनायक निकले। लेकिन मैं उसके बेहतर भविष्य की कामना करता हूँ।
#ऋषी_की_कलम_से
दोस्तों, आज विश्व मातृ दिवस है। यह दिन शायद सभी को पता होगा, इसलिए इसे बताने की आवश्यकता नहीं। पर मेरा यह लेख मातृ दिवस के वास्तविक महत्व और उससे जुड़ी हमारी जिम्मेदारियों पर है।
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया (फेसबुक, व्हाट्सऐप आदि) पर देख रहा हूं कि कई लोग मातृ प्रेम का दिखावा कर रहे हैं। ये लोग बरसाती कीड़ों की तरह सक्रिय हो गए हैं। (मैं यह नहीं कह रहा कि सभी एक जैसे हैं। इसमें कुछ भावुक और सच्चे लोग भी हैं, जिनका यहां अपमान करना अनुचित होगा।)
दिखावे का यह मातृ प्रेम इतना बढ़ा-चढ़ाकर प्रदर्शित किया जा रहा है कि उसकी कोई सीमा नहीं। पर हकीकत क्या है? यह केवल वे लोग ही जानते हैं। मेरा तो बस एक अनुमान है:
अगर इस दिन दिखावे के लिए ही सही, लोग अपनी माँ को वृद्धाश्रम से घर लाने लगें, तो शायद 95% वृद्धाश्रम खाली हो जाएंगे।
इससे आप समझ ही गए होंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूं।
मैं सभी से यही कहना चाहूंगा कि आपकी माँ ने आपके प्रति प्रेम करने में कभी छल या कपट नहीं किया होगा। और न ही कोई माँ ऐसा करती है। तो फिर आप क्यों उसकी ममता और प्रेम के साथ छल करते हैं? क्यों उसका दिखावा करके मातृ प्रेम की सच्चाई को आहत करते हैं?
मेरी आपसे विनती है कि अपनी माँ को उसका सम्मान और हक, यानी बच्चों का निःस्वार्थ प्रेम, लौटाएं।
और अब कुछ बात उन लोगों के लिए, जो लड़कियों के नाम से फर्जी खाते बनाकर मातृ प्रेम का प्रदर्शन कर रहे हैं।
भाई, पहले जाओ और अपनी माँ से सीखो कि नारी जाति का सम्मान कैसे करना है। अपनी माँ का आदर करना सीखो। उसके बाद मातृ प्रेम का प्रदर्शन करो। दिखावा करना आसान है, पर सच्चाई से जीना माँ का सच्चा सम्मान करना है।
ऋषि की कलम से।